दिल मे तेरी आहट को क्या कहु।
हम सो नही पा रहे है।
इस चाहत को क्या कहु।
छोड भी देते साथ ,जमाने मे किसी का
जो सांसो मे ,ही रूह बनकर बैठ गई हो।
उसको क्या कहुँ।
ना हम जी सकेगें ,ना तुम जी सकोगी।
दो जिस्म हद्रय एक हो गये ,
अब तुम ही बताओ,
इस चाहत को क्या कहुँ।
अब तुम ही बताओ,
इस चाहत को क्या कहुँ।
(दिलीप पवार)
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